हिन्दू जागरण नामक चिट्ठा में पूर्वोत्तर भारत पर लिखी प्रविष्टी पर टिप्पणी
पूर्वोत्तर भारत या 'उपेक्षित ऊर्वशी अंचल' के बारे में कितनी कम जानकारी होती है हम सब के पास.माईती (मीती नहीं)समुदाय वैश्नव है और बांग्ला लिपि से अलग,थाई लिपि के ज्यादा निकट,अपनी लिपि की तलाश में है.भारतीय सैन्य व अर्ध सैन्य बलों के अत्याचारों के प्रतिकार में शुरु हुए व्यापक जनान्दोलन को शेष भारत के कितने 'हिन्दुओं' का समर्थन मिला था ?उल्फ़ा और आई.एस. आई. के तालुकातों के बारे में जानते हुए भी उसका उल्लेख क्यों नहीं है आपकी टिप्पणी में?उल्फा में अधिसंख्य हिन्दू हैं,क्या इसीलिये?हर प्रकार की आतंकी घटना का विरोध होना चहिये लेकिन उन उपेक्षापूर्ण नीतियों को नज़र -अन्दाज भी न करें जब चीनी हमले के वक़्त जवाहरलालजी ने पूर्वोत्तर भारत को रेडियो से बिदाई संदेश- सा दे दिया था.अरुणाचल (तब का नेफ़ा ) के जिन गांवों में कभी आईना नही देखा था, उन्हें आईना और माओ तथा नेहरू की तसवीर दिखा कर वे पूछते थे,'तुम्हारा चेहरा किससे मिलता है ?'आदिदेव विश्वनाथ के कैलाश-मानसरोवर की मुक्ति की कल्पना भी एक 'छद्म धर्म निर्पेक्ष'और नस्तिक लोहिया ने ही की जो 'हिन्दू बनाम हिन्दू' के संघर्ष से वाकिफ़ थे.
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