Friday, September 15, 2006

हिन्दी दिवस ( १४ सितंबर ): महात्मा गांधी के विचार
September 13th, 2006 at 2:37 pm (Uncategorized)

मेरा यह विश्वास है कि राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं , वे आत्महत्या ही करते हैं . यह उन्हें अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित करती है . विदेशी माध्यम से बच्चों पर अनावश्यक जोर पडता है . वह उनकी सारी मौलिकता का नाश कर देता है . विदेशी माध्यम से उनका विकास रुक जाता है और अपने घर और परिवार से अलग पड जाते हैं . इसलिए मैं इस चीज को पहले दरजे का राष्ट्रीय संकट मानता हू . ( विथ गांधीजी इन सीलोन , पृष्ट १०३ )
इस विदेशी भाषा के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है . उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है , उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है . इसकी वजह से वे अपनी शिक्षा का सार अपने परिवार के लोगों तथा आम जनता तक पहुंचाने में असमर्थ हो गये हैं . विदेशी माध्यम ने हमारे बालकों को अपने ही घर में पूरा विदेशी बना दिया है . यह वर्तमान शिक्षा -प्रणाली का सब से करुण पहलू है . विदेशी माध्यम ने हमारी देशी भाषाओं की प्रगति और विकास को रोक दिया है . अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता हो , तो मैं आज से ही विदेशी माध्यम के जरिये हमारे लडके और लडकियों की शिक्षा बंद कर दूं और सारे शिक्षकों और प्रोफ़ेसरों से यह यह माध्यम तुरन्त बदलवा दूं या उन्हें बर्ख़ास्त करा दूं . मैं पाठ्य पुस्तकों की तैयारी का इन्तजार नहीं करूंगा . वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे - पीछे चली आयेंगी . यह एक ऐसी बुराई है , जिसका तुरन्त इलाज होना चाहिये .

( हिन्दी नवजीवन , २ - ९- ‘२१ )

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